मेकैनिकल, इलेक्ट्रिकल और सिविल इंजीनियरों का वास्तविक उद्योग संयंत्र है नहीं तो डिजाइन कंपनी।
डिजाइन में जाने पर भी इनके लिए प्लांट का एक्सपोजनजर जरूरी है। अगर ये अभियांत्रिकी स्नातक अर्थात् बीई /बी टेक हैं।
आप कभी किसी प्लांट का नियंत्रण कक्ष, फील्ड देखें और एक कम्प्यूटर इंजीनियर का कार्यालय देखे तो समझ आ जाएगा एक कारण।
चित्र में संयंत्र का नियंत्रण कक्ष है। और नीचे एक प्लांट के अबसाॅर्पशन टावर अथवा स्टैक हैं।
स्रोत
ऐसी जगह काम करते हैं हम!!
इन्फोसिस का पुणे कैम्पस (सौजन्य ग्लासडोर)
सुविधाजनक, सुरक्षित और आरामदेह माहौल किसको प्रिय नहीं है?
कितने लोग विकल्प रहने से भी धूल धक्कड़, जहरीली गैस, ज्वलनशील पदार्थ, बड़ी बड़ी शोरगुल फैलाते यंत्रों के बीच रहना चुनेंगे?
एक चूक हुई तो कन्वेयर बेल्ट ने खींच लिया पूरा हाथ!!
नीचे धमन भट्टी और स्किप का चित्र है। हर इंटेग्रेटेड इस्पात संयंत्र का ह्रदय।
दूसरा कारण - भारत में अभी भी सबसे अधिक “पैकेज” देने वाली कंपनियां हैं अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक जैसी सिलिकॉन वैली की कंपनियां। [1] ये लेती हैं किनको?
सही कहा।
अधिकतर
काॅलेज में (आईआईटी सहित) संगणक विज्ञान अभियांत्रिकी छात्रों का क्लास का
औसत प्लेसमेंट पैकेज बाकी स्ट्रीम्स से कम से कम 5 लाख सालाना अधिक होता
है।
बात औसत की हो रही है।
क्यों ना चुने कोई कम्प्यूटर साएंस?
तीसरा
कारण - कम्प्यूटर साइंस वालों को नौकरी की लोकेशन अधिकतर मिलती है
महानगरों में और कोर इंजिनियर्स को - बोकारो, जमशेदपुर, बेल्लारी, दहेज,
जामनगर, नगरनार, भिलाई, सोलापुर, छिंछवाड़, अंकलेश्वर, असम डिब्रूगढ़,
ओडिशा में झारसुगुड़ा।
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