2014 के चुनाव से ठीक पहले एक टीवी चैनल द्वारा जानबूझकर एक मुलाकात बिना एडिट किये और बिना राहुल की अनुमति के प्रसारित किया गया था। जिसमे कुछ आपसी चर्चा भी दिखा दी गई थी।
वैसे भी आज की स्थिति में 99% नेता लोग extempore अचिन्तित या , बिना तयारी के, या तात्कालिक interview या मुलाकात या पत्रकार वार्ता आदि कर नही सकते हैं।
जैसे जैसे नेताओं की शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है
और अशिक्षित तथा अननुभवि नेता लोग बड़े बड़े पदों ओर असिन होते जा रहे हैं
किसी भी शीर्ष नेता की खुली पत्रकार वार्ता आदि तो भूलने के ही दिन आ गए
हैं।
अभी तो हाल ही में चुनाव में हार के बाद एक बहोत बड़े राष्ट्र के नेता की पत्रकार से हुई झपट आदि तो आम बातें हो गई है। हमारे देश की भी अवस्था करीब ऐसी ही है।
- राहुल को भुलावे में रखकर एक सामान्य बातचीत के दौरान हुई बातों को सीधे प्रसारित करने के बाद व्हाट्सएप्प विश्ववीद्यालय के महान छात्रोंने उसके बारेमे ऊलजलूल की doctored या फर्जी संपादित वीडियो और फ़ोटो साझा कर कर के ऐसा एक फजूल का चित्र निर्माण किया जैसे वो कोई अनपढ़ पप्पू ही है।
और उससे आगे कुछ नही है। राहुल और उसके प्रत्यक्ष प्रतिद्वंद्वी की … में रतिभर भी फरक नजर तो नही आता है। मगर प्रचार यंत्रणा के अत्यंत दुरुपयोग का यह एक उत्तम उदाहरण कहा जा सकता है।
- मेरा खयाल है कि ये जो राजनीतिक अखाड़ा है इस मे भी खेल के कुछ नियम और धर्म भी होने चाहिए। वैसेही अपने शालीनता और एक सभ्य व्यवहार भी एक बात होती है।
राहुल को आप जितने बार भी हो सके चुनाव में शिकस्त दो चाहे जो भी हथकंडे करो मगर शालीनता और सभ्यता भरा व्यवहार तो अपेक्षित ही है।
मेरी अपनी एक सोच है।
श्रीराम।
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