जम्मू-कश्मीर में हाल ही में पुलवामा हमले के बाद भी पीएम नरेंद्र मोदी पाकिस्तान पर हमला क्यों नहीं करते ?


कश्मीर का सबसे बड़ा स्टेक होल्डर अमेरिका है, पाकिस्तान नहीं। यदि अमेरिका, चीन एवं सऊदी अरब पाकिस्तान के माध्यम से कश्मीर के आतंकियों को मदद देना बंद कर दें तो हम पाकिस्तान के दखल को रोक सकते है। अत: सही जवाब खोजने के लिए प्रश्न यह होगा कि
"पुलवामा हमले के बाद भारत अमेरिका को कश्मीर में दखल करने से कैसे रोक सकता है ?"
और जब हम प्रश्न को इस तरह से देखते है तो हमें आसानी से नजर आने लगता है कि कोई भी सरकार या नेता कश्मीर समस्या को हल करने में क्यों नाकाम रहा है !!
[ खंड (अ ) में मैंने पुलवामा हमले पर संक्षिप्त टिप्पणी एवं तात्कालिक समाधान सुझाए है। खंड (ब) में कश्मीर की मूल समस्या के बारे में जानकारी है। खंड (स) समस्या के स्थायी समाधान के बारे में है, और खंड (द) बताता है कि एक आम नागरिक होने नाते आप कश्मीर समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठा सकते है। ]
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खंड (अ )
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(1) यदि सेना के पास आर्म्ड ट्रक एवं होते थे तो शहीदों की संख्या घटकर 4-5 हो जाती !! आर्म्ड ट्रक मजबूत इस्पात से बनाए जाते है और इन ट्रको में हथगोले, बम विस्फोट, रोकेट लांचर, बुलेट, लेंड माइंस आदि के हमले को सहने की क्षमता होती है।
चित्र 1
लेकिन हमारे जवान बसों में सफर कर रहे थे !! और उस संवेदनशील इलाके से जहाँ पर हमला होना कोई नयी बात नहीं है। दरअसल बसों के होने से हमले की संभावनाएं बढ़ गयी थी, क्योंकि बसों को तो राकेट लांचर से भी उड़ाया जा सकता है !!
चित्र 2
भारत की सेना कमजोर होने, और सैनिको के पास पर्याप्त हथियारो का अभाव होने के कारण हमला हुआ। पेड मीडिया इस बात को बिलकुल दबा देता है कि हमले की वजह हथियारों की कमी होना है। तो यह हमला होना था। हफ्ते भर पहले न हुआ अभी हुआ, और अभी न होता तो हफ्ते भर बाद होता। यह एक तथ्य है कि, प्रधानमन्त्री जी ने पिछले 5 साल में ऐसे क़ानून छापने की अवहेलना की जिससे सेना को हथियार मिले। और यह स्थिति सिर्फ मौजूदा पीएम की नहीं है, बल्कि सभी पूर्व पीएम भी इन कानूनों की अवहेलना कर रहे थे। इंदिरा जी एवं शाश्त्री जी के शासन काल को निकाल दें तो शेष ( 72-18 = 54 ) 54 वर्षो में भी किसी पीएम ने ऐसे कोई क़ानून नहीं छापे जिससे सेना हथियारो में आत्मनिर्भर बने।
और इस हमले में किसी आधुनिक हथियारों का अभाव वजह नहीं है, बल्कि यह अभाव ट्रको का है !! मतलब हमने 50 जवान खोये और पूरी दुनिया के सामने हमारी कमजोरी जाहिर हुयी क्योंकि हमारे पास अपने जवानो को देने के लिए या तो आर्म्ड ट्रक नहीं थे, या पैसा नहीं था, या हमारे शासको को यह फ़िक्र करने की फुर्सत नहीं थी !!
ये ट्रक हमें आयात करने की भी जरूरत नहीं है। टाटा, महिंद्रा एवं अशोक लीलेंड ये ट्रक बनाते है !! मैं प्रधानमंत्री पर राईट टू रिकॉल लाने के अतिरिक्त इसका कोई समाधान नहीं देखता। और जैसे ही पीएम पर राईट टू रिकॉल आएगा वैसे ही पीएम तुरंत सेना को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक नोटिफिकेशन निकालने लगेगा।
(2) नवम्बर 2014 में एक कार ने दो चेक पोस्ट तोड़ी और सेना द्वारा उन पर फायरिंग करने के कारण 2 स्थानीय युवको की जाने गयी। और इस हादसे के बाद प्रधानमंत्री जी ने सेना के उच्च अधिकारियों को बाध्य किया कि वे इस हादसे के लिए माफ़ी मांगे !! इससे पहले इस तरह की गड़बड़ी के लिए पीएम खेद व्यक्त कर देते थे, लेकिन सेना पर कभी इस तरह का दबाव नहीं डाला गया था। प्रधानमंत्री जी ने इसे चुनावी रैली में दोहराया कि पिछले 20 वर्ष में यह पहली बार हुआ है कि सेना ने माफ़ी मांगी है !!
मेरे विचार में प्रधानमंत्री जी को ऐसा नहीं करना चाहिए था। इसने इस बात की पुष्टि की कि भारतीय सेना पिछले 20 वर्षो से कश्मीर में लापरवाही से काम कर रही है। इसने सेना के मनोबल को तोड़ा और उन्होंने सिविलयन वाहनों की चेकिंग करने की प्रोसीजर का कड़ाई से पालन करना बंद कर दिया। इस तरह जब आतंकियों ने देखा कि सेना के काफिले में आसानी से मर्ज हुआ जा सकता है, तो उन्होंने हमले की योजना बनायी।
मेरा बिंदु यह है कि जब हमारे पास आर्म्ड ट्रक भी नहीं है, और हम सिविलयन ट्रेफिक भी नहीं रोक रहे है तो हमले योजना बनाने वालो को इसने प्रेरित किया। यदि हम काफिले के गुजरने के दौरान सिविलयन ट्रेफिक नहीं रोक रहे है, तो यह सामान्य समझ का विषय है कि हमारे जवानो के पास आर्म्ड ट्रक होने चाहिए थे, और यदि हमारे पास आर्म्ड ट्रक नहीं थे तो हमें सिविलयन ट्रेफिक रोकना चाहिए था। हमने दोनों नहीं किये !! सारी दुनिया जानती है कि कश्मीर में आतंकी हर समय भारतीय जवानो की घात में रहते है। और जैसे ही सुरक्षा में चूक होगी हमला होगा।
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(3) पुलवामा के हमले के विरुद्ध जवाबी कार्यवाही :.
3.1. सैन्य कार्यवाही : यदि अमेरिका भारत को 5-7 ड्रोन और सेटेलाईट हेल्प दे दे तो ड्रोन पाकिस्तान की सीमा में घुसकर उन्हें वाकयी नुकसान पहुँचाने वाली सर्जिकल स्ट्राइक* कर सकते है। लेकिन मुझे बेहद कम उम्मीद है कि अमेरिका हमें ड्रोन देगा। यदि अमेरिका हमें ड्रोन नहीं देता तो भारत के सैनिको को किसी न किसी तरह से पाकिस्तान की सीमा में घुसना पड़ेगा, और उनकी सीमा में घुसना एक्ट ऑफ़ वॉर होगा।
यदि अमेरिकी सहयोग नहीं करे तो भारत के लिए ऐसा करना काफी मुश्किल है। भारत की सेना की स्थिति अभी ऐसी नहीं है कि हम पाकिस्तान पर युद्ध की घोषणा कर सके। और यदि अमेरिका भारत को हथियारों की मदद देकर हमें पाकिस्तान पर खुला हमला करने के लिए उकसाता है तो अपना निवेश बचाने के लिए चीन को भी पाकिस्तान की तरफ से युद्ध में आना पड़ेगा। और इस तरह इस युद्ध का दायरा बेहद विस्तृत हो जाएगा।
ड्रोन से हमले का फायदा यह है कि भारत बोल सकता है कि ड्रोन हमने नहीं भेजें। तुम्हारे पास सबूत है तो दिखाओ। पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया भी जान रही होगी कि हम झूठ बोल रहे है, और हम भी जान रहे होंगे कि पाकिस्तान यह बात जान रहा है कि हम झूठ बोल रहे है। लेकिन जब बोलने वाला और सुनने वाला दोनों जानते है कि झूठ बोला जा रहा है, तो यह गुनाह नहीं है। हमारे साथ भी पाकिस्तान ऐसा ही कर रहा है।
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(*) पूर्व में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक से जुड़े संभावित मिथ : 19 सितंबर को उड़ी पर हुए हमले में हमारे 20 जवान शहीद हुए। पेड मीडिया ने अपने ऑनलाइन पोर्टल्स पर 22 सितम्बर यानी उडी हमले के 3 दिन बाद यह खबर चलानी शुरू की कि भारत ने बोर्डर क्रोस करके 40 आतंकियों को मार गिराया है !!
और हद तो यह कि , दैनिक भास्कर ( DB Post ) ने 22 सितम्बर 2016 को यह खबर अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर फुल साइज़ फॉण्ट में फोटो के साथ छाप दी !! इसके इ पेपर का लिंक मैंने तब सेव कर लिया था। 26 सितम्बर को इस लिंक को हटा दिया गया !!
संस्करण - भोपाल और हेडलाइन थी - Sharif truns cry baby , Indian troops crossed LoC and killed 20 Jihadiis on 21-sep-2016
लेकिन सेना ने 24 सितम्बर को इसका खंडन जारी कर दिया, अत: सभी मीडिया हॉउस द्वारा उन सभी ख़बरों को हटा दिया गया। निचे दिए गए लिंक को भी हटा दिया गया है। किन्तु प्रिंट मीडिया में होने के कारण इसकी कोपी अभी भी प्राप्त की जा सकती है।
यह उस अख़बार में छपी खबर का इ पेपर लिंक है - http://epaper.dbpost.com/epaper_...
और अख़बार में छपने के 6 दिन बाद यही घटना 28 सितम्बर को घटी !!
पेड मीडिया ने कैसे इसे विश्वसनीय बनाया ?
तथ्यों का अनुसरण करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि सेना द्वारा प्रयुक्त लफ्ज़ “सर्जिकल स्ट्राइक” को आधार बना कर पेड मीडिया द्वारा मिक्स सेन्स पैदा किया गया।
(A) किसी विशिष्ट क्षेत्र को ध्वस्त करने के लिए की गयी इस प्रकार की फायरिंग को सर्जिकल स्ट्राइक कहा जाता है। लेकिन इसके लिए यह जरुरी नही कि बोर्डर क्रोस की जाए। सेना ने बयान दिया कि , “हमने एक्रोस द बोर्डर सर्जिकल स्ट्राइक की, जिसमे कई आतंकियों और उनके सहयोगियों की केजुअल्टी हुयी।”
सेना का यह बयान पूरी तरह सच्चा था। सेना ने नहीं बताया था कि हमने बोर्डर क्रोस की है, और न ही सेना ने मारे गए आतंकियों की संख्या बतायी थी।
(B) पेड मीडिया ने इसमें आतंकियों की संख्या, हेलिकोप्टर और बोर्डर क्रोस करना अपनी तरफ से जोड़ दिए। इस तरह सेना द्वारा की गयी एक सच्ची सर्जिकल स्ट्राइक को आधार बनाकर अपुष्ट खबरों का बड़े पैमाने पर प्रसारण किया गया। सर्जिकल स्ट्राइक के लगभग 5 दिन बाद केन्द्रीय मंत्री मेजर राज्यवर्धन ने हेलिकोप्टर्स का प्रयोग न किये जाने की पुष्टि की, तब मीडिया ने अपने ग्राफिक्स में बदलाव करके यह बताना शुरू किया कि सैनिक रेंगते हुए गए थे !! जब बीबीसी ने सेना से बोर्डर क्रोस करने के बारे में पुछा तो सेना ने पुष्टि करने से इनकार कर दिया।
मैं अपने कई लेखो में लिख चुका हूँ कि मैं न तो कभी टीवी देखता हूँ और न ही अख़बार पढता हूँ। सरकार द्वारा दिए गए आधिकारिक बयान और गेजेट ही मेरी सूचनाओ के स्त्रोत है। मुझे भारत सरकार एवं भारतीय सेना पर भरोसा है, किन्तु पेड मीडिया पर बिलकुल नहीं। पेड मीडिया के में उन्ही वक्तव्यों पर भरोसा करता हूँ जिनमे सरकार या सेना के बयानों को उद्धत किया जाता है। किन्तु आज दिन तक रिकोर्ड पर सेना एवं सरकार का ऐसा कोई बयान नहीं है जो बताता हो कि सेना ने बोर्डर क्रोस की थी।
तो तथ्य यह है कि सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी और सरकार ने भी इसकी पुष्टि की है, किन्तु सेना एवं सरकार ने बोर्डर क्रोस करने की बात कभी नहीं कही। किन्तु 2 बार सेना एवं सरकार ने मीडिया में दिखाए जा रहे तथ्यों का खंडन भी किया। अत: सेना एवं सरकार के बयानों के आधार पर मेरा मानना है कि सर्जिकल स्ट्राइक करने के दौरान भारत ने होवित्जर एवं तोपों का इस्तेमाल करके पाकिस्तानी सीमा में स्थित केम्पो पर गोलीबारी की थी, लेकिन बोर्डर क्रोस नहीं की थी। जरुरी नहीं कि आप मेरी बात से सहमत हो। आपको जो भी वर्जन ठीक लगे आप मान सकते है। एक सीमा के बाद इस बिंदु पर बहस फिजूल है, क्योंकि अपुष्ट एवं अधूरी सूचनाओं के कारण अलग अलग व्यक्तियों के पास अलग अलग वर्जन है। यहाँ तक कि सभी मीडिया हाउस के वर्जन भी अलग अलग है।
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3.2 असैन्य कार्यवाही :
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(1) प्रधानमंत्री जी ने पाकिस्तान के मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा ख़त्म कर दिया है, और पाकिस्तानी वस्तुओ पर 200% आयात शुल्क भी लगाया है। मैं इस कदम का समर्थन करता हूँ। और भी इस तरह के कदम उठाये जाने चाहिए। जून में भारत पाकिस्तान के बीच लन्दन में क्रिकेट मेच होने वाले है। हमें इन्हें तत्काल रद्द करने की जरूरत है।
यदि भारत क्रिकेट से बायकाट करेगा तो पाकिस्तान के खिलाड़ी सर्वाइव नहीं कर पायेंगे। हमें टूरिजम भी बंद कर देना चाहिए। पाकिस्तान से काफी लोग इलाज कराने भारत आते है। कुल मिलाकर भारत को यथासंभव सभी सांस्कृतिक, व्यापारिक, पर्यटन एवं कलात्मक संबध तोड़ देने चाहिए। सिर्फ जो बेहद जरुरी हो, वही सम्बन्ध जारी रहे। हालांकि इस तरह के प्रतिबन्ध स्थायी समाधान नहीं है, किन्तु पाकिस्तान को विचलित जरुर करेंगे।
(2) यदि सेब के डब्बों एवं सेब पर जो स्टिकर लगाए जाते है उन पर पिन कोड एवं जिले का नाम लिखना अनिवार्य कर दिया जाए एवं बिना स्टिकर की खेप को जब्त करने या दण्डित करने का क़ानून बना दिया जाए तो उपभोक्ता यह जान सकेगा कि अमुक सेब कश्मीर से आया है या जम्मू / हिमाचल से। और फिर इस तरह की घटना होने पर उपभोक्ता यह फैसला कर सकता है, कि उसे क्या करना है !!
यह उपाय निरापद इसीलिए है क्योंकि इसमें हम किसी चीज के विनिमय या बिक्री पर रोक नहीं लगा रहे। लेकिन इस क़ानून के गेजेट में आने से कश्मीर में आतंकियों को स्थानीय समर्थन मिलना बंद हो जाएगा। क्योंकि जब भी कोई इस तरह का हादसा होगा, तब कश्मीर के सेबो की बिक्री अचानक से स्वत: ही गिर जायेगी जिससे स्थानीय लोगो को नुकसान होना शुरू होगा और आतंकी उनके लिए घाटे का सौदा बन जायेंगे।
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खंड ( ब )
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(1) कश्मीर के स्टेक होल्डर्स
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(1.1) अमेरिका : भारत के ज्यादातर कार्यकर्ता इस तथ्य से सूचित नहीं है कि अमेरिका कश्मीर को स्वतंत्र देश बनाना चाहता है। यदि एक बार कश्मीर स्वतंत्र हो जाता है तो चीन, पाकिस्तान और भारत से बचने के लिए स्वतंत्र कश्मीर के पास अमेरिका का आश्रय लेने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रहेगा। तब अमेरिका कश्मीर को "बचाने" के लिए वहां पर अपने सैन्य अड्डे स्थापित कर लेगा। कश्मीर का रणनीतिक महत्त्व होने के कारण अमेरिका कश्मीर का सबसे बड़ा स्टेक होल्डर है। कश्मीर को लगातार अस्थिर बनाए रखने के लिए आतंकीयों एवं पाकिस्तान को हथियारों की मदद देता है। अमेरिका सबसे बड़ा स्टेक होल्डर इसीलिए है क्योंकि अमेरिका की सेना दुनिया में सबसे मजबूत है।
(1.2) चीन : चीन की सेना भारत एवं पाकिस्तान से कई गुणा मजबूत है, अत: दूसरा सबसे बड़ा स्टेक होल्डर चीन है। 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर के भारत से लगते हुए हिस्से का एक बड़ा भू भाग पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया था, और भारत के साथ लगे हुए कश्मीर के हिस्से अक्साई चिन पर चीन ने 1962 तक कब्ज़ा कर लिया !! इस तरह चीन लगातार कश्मीर में अपनी सीमाओ का विस्तार कर रहा है और अब भारत अधिकृत कश्मीर भी उसकी नजर में है।
चित्र 3 : आभार - china economic corridor in pok map
इसके अलावा कश्मीर के लिहाज से अब भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा चीन द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर के बीचों बीच बनाया जा रहा इकोनॉमिक कॉरिडोर है। चीन के इस कोरिडोर में कई लाइनों के हाई वे, हाई स्पीड ट्रेन ट्रेक, गैस एवं तेल सप्लाई की पाइप लाइन, फाइबर ऑप्टिक, पॉवर प्लांट, सोलर प्लांट, सेज, निर्माण इकाइयां एवं मिलिट्री बेस होंगे !!
दुसरे शब्दों में पाक अधिकृत कश्मीर एवं भारत-पाकिस्तान की पूरी बोर्डर का यह पूरा हिस्सा चीन स्थायी रूप से टेक ओवर कर चुका है। चीन ने इस हिस्से का विस्तार गिलगित बाल्टिस्तान तक कर दिया है, जो कि भारत का इलाका है। भारत 2012 से ही चीन से लेकर अमेरिका तक बार बार यह आवाज उठा रहा है कि चीन ने भारत के इलाके पर अतिक्रमण कर लिया है, पर चूंकि चीन की सेना भारत की सेना से कई गुना ज्यादा ताकतवर है अत: चीन ने भारत के ऐतराज को खारिज कर दिया है। कुल मिलाकर कश्मीर पर अब चीन का मजबूत सैन्य दखल है, और यदि भारत एवं चीन का सैन्य अनुपात इसी तरह से गिरता रहा तो वक्त के साथ यह दखल बढ़ता जाएगा।
चित्र 4 :
(1.3) सऊदी अरब : कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए आतंकियों एवं कश्मीर के अलगाव वादी संगठनों को फंडिंग करता है। इसी पैसे से उन्हें हथियार मुहैया कराए जाते है।
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(2) कश्मीर की समस्या का समाधान क्यों नहीं हो पा रहा है ? .
(2.1) पहली समस्या यह है कि भारत के कार्यकर्ता जब भी कश्मीर पर विचार करते है तो अमेरिका एवं चीन की सैन्य शक्ति की अवहेलना कर देते है। उन्हें यह बात समझनी चाहिए कि कश्मीर भारत की अंतर्देशीय समस्या नहीं है, बल्कि यह कई देशो के बीच फंसा हुआ युद्ध का एक मैदान है। और अंतराष्ट्रीय राजनीति में कोई क़ानून या नियम नहीं होते। वहां सिर्फ एक नियम चलता है - बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाएगी। कोई दया नहीं, कोई अपवाद नही !!
(2.2) भारत के कार्यकर्ता इस तथ्य से भी अनभिज्ञ हैं कि अंतराष्ट्रीय राजनीति सेना की ताकत पर चलती है, नेता के हाव भाव और साहस पर नहीं चलती। भारत की सेना कमजोर है और इसीलिए हम लगातार अपनी जमीन गँवा रहे है। आजादी के बाद से चीन हमारी काफी जमीन पर कब्ज़ा कर चुका है, और कारगिल युद्ध में भी हमने .5353 के रूप में अपनी सबसे ऊँची चोटी गंवाई। भारत के कई कार्यकर्ता यह मानते है कि ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि भारत के प्रधानमन्त्री कमजोर थे, और मजबूत प्रधानमंत्री के होने से इस समस्या का समाधान हो जाता है। खेद का विषय है कि ऐसा नहीं होता। देश से बाहर देश की हैसियत को उसकी सेना से ही आँका जाता है। इसे स्पष्ट करने के लिए मैं हाल ही का एक वास्तविक उदाहरण देता हूँ।
(A) 2014 में अंतराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने भारत के 1 लाख वर्ग किलामीटर समुद्री क्षेत्र पर बांग्लादेश का दावा मंजूर कर लिया। इस क्षेत्र में ONGC ने तेल के भंडार चिन्हित किये हैं, लेकिन अब भारत इससे वंचित हो गया है। यह क्षेत्र बांग्लादेश के पास जाने के बाद अब चीन यहाँ अपना बेस बनाएगा और तेल निकालेगा !! भारत के मछुआरे भी अब मछली पकड़ने के लिए इस क्षेत्र में नहीं जा सकेंगे।
चित्र 5
टीवी अख़बार एवं ज्ञान देने वाली पुस्तकें पढ़ने वाले बुद्धिजीवी आपको यह समझाने की कोशिश करेंगे कि एक संयुक्त राष्ट्र संघ होता है , एक अन्तराष्ट्रीय न्यायालय होता है, एक सुरक्षा परिषद् होती है, एक WTO होता है और इन अंतराष्ट्रीय संगठनो के फैसलों का हमें सम्मान करना चाहिए !! न्यायालय के फैसलों का असम्मान करना अच्छी बात नहीं है आदि आदि !! तो मोदी साहेब ने इस फैसले का स्वागत करते हुए सामरिक और आर्थिक महत्त्व के इस क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ दिया !!
(B) अब दूसरा उदाहरण देखिये : चीन ने फिलिपिन्स की समुद्री सीमा पर कब्ज़ा करके उसके आईलेंड पर अपना मिलिट्री बेस बना लिया था। फिलिपिन्स एवं चीन का यह मामला अन्तराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल के पास गया और इसी ट्रिब्यूनल ने 2016 में फैसला दिया कि, चीन अपना मिलिट्री बेस हटाए और फिलिपिन्स के क्षेत्र में दखल न करे। और शी जिनपिंग ने ट्रिब्यूनल से कहा -- भाड़ में जाओ !! चीन ने कहा हमारे हिसाब से ट्रिब्यूनल का फैसला गलत है, इसीलिए जगह खाली नहीं की जायेगी !!!

टीवी देखने और अखबार पढने वाला कोई भी व्यक्ति बता सकता है कि भारत के प्रधानमंत्री चीन के प्रधानमंत्री की तुलना में बेहद मजबूत एवं ताकतवर आदमी है। लेकिन सेना का महत्त्व समझने वाला व्यक्ति यह जानता है कि अन्तराष्ट्रीय मामलों में असली ताकत का पैमाना क्या होता है। तो हमने इतना कीमती क्षेत्र क्यों गंवाया ? इसकी एक मात्र और सीधी वजह यह है कि भारत की सेना चीन के तुलना में कई कई गुना कमजोर है। बांग्लादेश पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में जा चुका है, और इसमें चीन के हित जुड़ जाने के कारण हमने यह क्षेत्र गवां दिया।
मेरा बिंदु यह है कि यदि हमने अपनी सेना को अमेरिका के बराबर ताकतवर नहीं बनाया तो कश्मीर का भारत के हाथ से निकलना लगभग नहीं बल्कि 100% तय है।
(2.3) भारत के ज्यादातर कार्यकर्ता इस तथ्य से भी अनभिज्ञ हैं कि भारत के सभी बड़े राजनैतिक दल एवं शीर्ष नेता कश्मीर की समस्या को बढाने के लिए काम कर रहे है , क्योंकि ये सभी सज्जन चुनाव जीतने के लिए अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर बुरी तरह से निर्भर है। और जब मैं कहता हूँ कि अमेरिका कश्मीर को स्वतंत्र कराना चाहता है, तो इसका एक डरावना आशय यह होता है कि भारत की सभी राजनैतिक पार्टियों के ब्रांडेड नेता एवं टीवी-अख़बार में नजर आने वाले सभी चेहरे कश्मीर को स्वतंत्र कराने का प्रतिरोध नहीं करेंगे। और इसके लिए उन्हें कुछ करना नहीं होता है, बस वे उन कानूनों की अवहेलना कर देते है जिन्हें गेजेट में छापकर कश्मीर पर नियंत्रण हासिल किया जा सकता है।
इसका आशय यह नहीं है कि वे एंटी नेशनल एलिमेंट है, लेकिन यदि वे अमेरिकी हितो के खिलाफ जायेंगे तो उनका राजनैतिक कद तेजी से घटने लगेगा। तो हर बार वे अमेरिकी हितो को ही चुनते है। ये बात गले उतारना काफी मुश्किल है, अत: मैं इस पर किसी अन्य लेख में विस्तृत रूप से लिखूंगा कि भारत के सभी नेता कैसे अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पूर्ण नियंत्रण में है, और क्यों अब अमेरिकी हितो का विरोध करने वाला नेता भारतीय राजनीति में टिक नहीं पायेगा। जिस नेता का अमेरिकी हितो के प्रति जितना झुकाव होगा वह टीवी एवं अखबार के माध्यम से उतना ज्यादा ताकतवर प्रोजेक्ट किया जाएगा।
बहरहाल मैं यहाँ एक उदाहरण रख रहा हूँ जिससे आप अंदाजा लगा सकते है कि दशा किस हद तक बदतर हो रही है।
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कृपया निचे दिए गए विवरण देखिये
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कश्मीर घाटी में निवास करने वाली जनसँख्या = 69 लाख ( इसमें 96% से ज्यादा मुस्लिम है )
जम्मू एवं कश्मीर राज्य में मुस्लिम जनसँख्या = 86 लाख
जम्मू में रहने वाले सिक्ख + हिन्दुओ की जनसँख्या = 36 लाख
जम्मू में रहने वाले मुस्लिमो की जनसँख्या = 17 लाख
मतलब , यदि 20 लाख मुस्लिम कश्मीर से आकर जम्मू में बस जाते है तो कश्मीर में मुस्लिम मेजोरिटी में रहेंगे लेकिन जम्मू में भी मुस्लिमो का बहुमत हो जाएगा !!!
तो इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने 2016-2017 के बीच 3 गेजेट नोटिफिकेशन प्रकाशित किये, जो यह कहते है कि -
  • (1) यदि कोई मुस्लिम कश्मीर में आतंकियों दी जा रही धमकियों या दमन से पीड़ित होकर जम्मू में आकर निवास करता है तो उसे सरकार की तरफ से पुनर्वास के लिए जमीन दी जायेगी ( इससे पहले यह सुविधा सिर्फ कश्मीर के हिन्दूओ को ही उपलब्ध थी। क्योंकि उन्हें उत्पीडन का सामना करना पड़ रहा था और इसीलिए वे कश्मीर से पलायन करके जम्मू में शरण ले रहे थे। ) !
  • (2) यदि कोई नोमद या जनजातिय व्यक्ति / समुदाय जम्मू में सरकारी जमीन पर कब्ज़ा कर लेता है तो तब तक उससे जमीन खाली नहीं कराई जायेगी जब तक सरकार उसे अन्य कोई जमीन उपलब्ध न करवा दे !!
  • (3) और इसके बाद एक के बाद एक कई गेजेट नोटिफिकेशन जारी करके कई समुदायों को नोमद एवं जनजातियों का दर्जा दिया गया ( इनमे से ज्यादातर के पास फर्जी सर्टिफिकेट्स है ) !!
राज्य सरकार जो भी गेजेट नोटिफिकेशन जारी करती है वह सिर्फ तब ही प्रभाव में आ सकता है जब गवर्नर इस पर हस्ताक्षर करें। और गवर्नर प्रधानमंत्री की अनुमति के बाद ही हस्ताक्षर करता है !!
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इन गेजेट नोटिफिकेशन के आने के बाद ज्यादातर सम्भावना है कि 2024-25 तक जम्मू की धार्मिक जनसँख्या का अनुपात भी बदल जाएगा, और हम उस पर अपना नियन्त्रण खो देंगे। और तब विभिन्न समूहों की तरफ से इस तरह के प्रयास शुरू होंगे कि कश्मीर में जनमत संग्रह करवाया जाये। यदि जनमत संग्रह किया जाता है तो हम लीगली जम्मू कश्मीर खो देंगे और यदि जनमत संग्रह नहीं किया जाता है तो अमेरिका वहां बड़े पैमाने पर हथियार पहुंचाकर जनमत संग्रह की मांग पर हिंसा करवा सकता है। और यदि जनमत संग्रह होता है तो हम कश्मीर ऑफिशियली गँवा देंगे !!
तो अब आप समझ सकते है कि समस्या कहाँ है !! दरअसल हमारे नेता भाषण कुछ भी दे लेकिन वे गेजेट का इस्तेमाल करके कश्मीर को स्वतन्त्र बनाने की दिशा में धकेल रहे है। यह नोटिफिकेशन प्रधानमंत्री श्री मोदी साहेब की अनुमति से जारी हुआ है, और यदि हम प्रधानमंत्री बदल दें तब भी स्थिति यह रहेगी। कैसे ? क्या भारत की किसी भी राजनैतिक पार्टी ने इन गेजेट नोटिफिकेशन का विरोध किया है ? नहीं !!
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खंड (स)———-
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(1) स्थायी समाधान :
यदि कश्मीर चाहिए तो हमारी सेना को अमेरिका के बराबर ताकतवर होना चाहिए। इससे कम में काम चलने वाला नहीं है। कौनसे कानूनों को गेजेट में छापने से हम सेना को अमेरिका के बराबर ताकतवर बना सकते है, इनका विवरण मैंने इन दो पोस्ट में रखा है। मैं आपसे आग्रह करूँगा कि कृपया इन्हें देखें।
अगर चीन ने आज भारत पर युद्ध की घोषणा की तो क्या होगा?
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अगर पाकिस्तान ने आज भारत पर युद्ध की घोषणा की तो क्या होगा?
राईट टू रिकॉल पीएम , एम आर सी एम , वेल्थ टेक्स , Woic और मेक इन इंडिया मेड बाय इंडियन्स आदि कानूनों के गेजेट में आने से हमारी सेना आत्मनिर्भर होना शुरू हो जायेगी और तब हम निम्नलिखित कदम उठाना शुरू कर सकते है। कृपया ध्यान दें, निचे दिए गए उपाय राईट टू रिकॉल पीएम एवं जूरी सिस्टम कानूनों के आये बिना निरापद रूप से काम नहीं कर पायेंगे :
(1) हम दक्षिण अमेरिका के देशो जैसे क्यूबा और मेक्सिको को परमाण्विक, रासायनिक और जैविक हथियार देने का ऑफर दे सकते है। जैसे ही अमेरिका को इसके बारे में मालूम चलेगा उसके अगले मिनिट ही अमेरिका कश्मीर से अपने हाथ खींच लेगा।
(2) सऊदी अरेबिया को दबाने के लिए हम यमन एवं ओमान को मदद देना शुरू कर सकते है। जब यमन एवं ओमान की शक्ति बढ़ेगी तो उनका सऊदी अरेबिया से घर्षण बढ़ जाएगा, और सऊदी अरब कश्मीर के आतंकियों को फंडिंग करना बंद कर देगा।
(3) यदि भारत में राईट टू रिकॉल पीएम का क़ानून लागू हो जाता है तो हम पीएम को धारा 370 ख़त्म करने के लिए बाध्य कर सकते है। इसके निम्न तरीके है :
  • 3.1. पीएम लोकसभा में धारा 370 एवं धारा 35A का प्रस्ताव पास कर सकते है। यदि राज्य सभा इसमें अडंगा लगाती है, तो यह बात निकलकर सामने आ जायेगी कि कौनसे सांसद धारा 370 हटाने का विरोध कर रहे है। इससे अगले चुनावों में नागरिक उन्हें हरा देंगे और ऐसे सांसदों को वोट करेंगे जो धारा 370 को ख़त्म करने का समर्थन करें।

    किन्तु इसके लिए यह जरुरी है कि पीएम लोकसभा में धारा 370 का प्रस्ताव रखे एवं जब तक यह बिल नहीं गिरता तब तक भारत की जनता के सामने यह स्थापित नहीं हो पायेगा कि कौनसे सांसद धारा 370 हटाने का विरोध कर रहे है।
  • 3.2. यदि संसद से पास होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का जज इसमें टांग लगाता है तो पीएम महाभियोग लाकर उसे नौकरी से निकाल सकते है। या राईट टू रिकॉल सुप्रीम कोर्ट जज का क़ानून गेजेट में छाप सकते है। इस क़ानून के आने से भारत के नागरिक बहुमत का प्रदर्शन करके सुप्रीम कोर्ट के भ्रष्ट जज को नौकरी से निकाल कर ऐसे जज को नौकरी दे देंगे जो टांग न लगाये।
  • 3.3. पाठक इस बात पर ध्यान दें कि जब चीन ने तिब्बत को टेक ओवर किया तो तिब्बत ने अपने सदन में चीन में विलय का प्रस्ताव पास किया था। यदि राईट टू रिकॉल पीएम का क़ानून आ जाता है तो हम पीएम को बाध्य कर सकते है कि, वह जम्मू कश्मीर की विधायको को कन्विंस करे कि वे कश्मीर की विधानसभा में कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय का प्रस्ताव पारित करे।

    अभी विधायक ये प्रस्ताव इसीलिए पास नहीं कर रहे है क्योंकि यह प्रस्ताव पास न करने के लिए उन्हें सऊदी अरब से पैसा आता है। भारत की सेना यदि मजबूत हो जाती है तो पीएम इन विधायको को इसके लिए कन्विंस करना शुरू कर देंगे। पीएम इनको कैसे कन्विंस करेंगे यह सोचना पीएम का काम है। और पीएम इस दिशा में सोचना सिर्फ तब शुरू करेगा जब पीएम पर राईट टू रिकॉल आएगा।
  • 3.4. निचे एक तीन लाइन का ड्राफ्ट दिया गया है। इस ड्राफ्ट को गेजेट में प्रकाशित करके पीएम धारा 370 ख़त्म करने के लिए देश व्यापी जनमत संग्रह करवा सकते है। यह जनमत संग्रह पीएम कल की तारीख में करवा सकते है। यदि देश के कुल मतदाताओं के 51% मतदाता इस पर प्रस्ताव पर हाँ दर्ज कर देते है तो धारा 370 और धारा 35A ख़त्म करने का प्रस्ताव पास हो जाएगा। जनमत संग्रह में यदि कोई प्रस्ताव पास हो जाता है तो यह अपने आप में संविधान संशोधन की अनुमति है। अब न तो संसद इसे रोक सकती है और न ही सुप्रीम कोर्ट के भ्रष्ट जज इसमें टांग लगा सकते है।
निचे दिए गए ड्राफ्ट का प्रयोग करके हम कश्मीर राज्य का विलय हिमाचल एवं उत्तराखंड में करने का प्रस्ताव भी पास कर सकते है। इस तरह तीनो राज्यों का विलय करके एक राज्य बनाया जा सकता है।
Cv = Citizens Voice ; जनमत संग्रह करवाने के लिए प्रक्रिया
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========ड्राफ्ट का प्रारंभ ======
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Cv1. [ जिला कलेक्टर के लिए निर्देश ]
यदि कोई मतदाता जिला कलेक्टर कार्यालय में उपस्थित होकर कोई शिकायत या प्रस्ताव शपथपत्र के माध्यम से प्रस्तुत करता है, तो कलेक्टर उस शपथपत्र को 20 रूपये प्रति पृष्ठ की दर से शुल्क लेकर दर्ज करेगा और सीरियल नंबर के साथ एक रसीद जारी करेगा। कलेक्टर इस शपथपत्र को स्कैन करके शपथपत्र प्रस्तुतकर्ता की मतदाता संख्या के साथ प्रधानमन्त्री की वेबसाइट पर रखेगा, ताकि कोई भी नागरिक इस अर्जी को बिना लॉग इन के देख सके।
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Cv2. [ पटवारी के लिए निर्देश ]
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(2.1) कोई मतदाता यदि धारा-1 के तहत प्रस्तुत किये गए किसी शपथपत्र पर आपनी 'हाँ' या 'ना' दर्ज कराने के लिए मतदाता पहचान पत्र के साथ पटवारी कार्यालय में आता है, तो पटवारी 3 रुपये का शुल्क लेकर कंप्यूटर मंर मतदाता की हाँ / ना को उसकी मतदाता पहचान संख्या के साथ दर्ज करेगा, तथा मतदाता को इसकी एक रसीद देगा। पटवारी नागरिक की हाँ / ना को उसकी मतदाता संख्या के साथ प्रधानमन्त्री की वेबसाइट पर भी रखेगा। बीपीएल कार्ड धारक के लिए देय शुल्क 1 रू होगा।
(2.2) प्रधानमंत्री ऐसा सिस्टम बना सकेंगे जिससे मतदाता अपनी हाँ / ना 50 पैसे का शुल्क देकर एटीएम या एस.एम.एस. द्वारा दर्ज करवा सके।
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Cv3. [ सभी नागरिको, अधिकारियों, मंत्रियों, न्यायधीशों के लिए निर्देश ]
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मतदाताओ द्वारा दर्ज की गयी हाँ / ना किसी भी अधिकारी, मंत्री, जज, सांसद, विधायक आदि पर बाध्यकारी नहीं है। यदि भारत के कुल मतदाताओं के 51% मतदाता किसी शपथपत्र पर हाँ दर्ज कर देते है तो प्रधानमंत्री उस शपथपत्र पर कार्यवाही कर सकते है, या ऐसा करना उनके लिए जरूरी नहीं है, या प्रधानमंत्री इस्तीफा दे सकते है, या उन्हें ऐसा करने की जरुरत नहीं है। इस सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री का निर्णय ही अंतिम होगा।
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========ड्राफ्ट की समाप्ति======
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खंड (द).
मेरा मानना है कि यदि कोई नागरिक पीएम से कोई मांग कर रहा है तो उसे यह मांग कम से कम प्रधानमंत्री के सम्मुख अवश्य रखनी चाहिए। यदि आप अपनी मांग सिर्फ नागरिको के सामने रख रहे है किन्तु पीएम के सामने नहीं रख रहे है तो मैं इसे गंभीर गतिविधि नहीं मानता। साथ ही इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि आपकी मांग स्पष्ट हो। पीएम आपकी मांग पर कार्यवाही करें या न करें यह बाद की बात है, किन्तु आपको अपनी मांग उन्हें भेजनी अवश्य चाहिए।
पीएम के सामने अपनी मांग रखने के कई तरीके हो सकते है, लेकिन विभिन्न विशिष्ट गुणों के कारण में निचे दिए गए 3 तरीको को वरियता देता हूँ :
(1) प्रधानमंत्री को ट्विट करना
(2) प्रधानमन्त्री कार्यालय पर पोस्टकार्ड भेजना
(3) पीएम की वेबसाईट newindia पर रखे गए प्रस्ताव का समर्थन करना।
आप इनमे से किसी भी तरीके का या तीनो तरीको का इस्तेमाल कर सकते है। कृपया मेरा ब्लॉग सेक्शन देखें। वहां आपको विभिन्न क़ानून ड्राफ्ट्स के विवरण मिलेंगे। आप जिस भी क़ानून का समर्थन करते हो उसकी मांग पीएम से कर सकते है। प्रत्येक ड्राफ्ट में मांग करने के तरीके का विवरण भी दिया गया है।
कश्मीर मुद्दे के हल के लिए आप प्रधानमंत्री जी से निचे दी गयी मांग कर सकते है।
कृपया पीएम को ट्विट करें एवं उन्हें पोस्टकार्ड लिखें कि धारा-370 और धारा-35A को हटाने के लिए संसद में संवैधानिक संशोधन लाये।
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ट्वीट एवं पोस्टकार्ड में यह लिखें :
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@PmoIndia #RemoveArt370 #RemoveArt35A. https://newindia.in/causes/CancelArt370
प्रधानमंत्री जी , कृपया धारा -370 और धारा-35 को हटाने के लिए संसद में संवैधानिक संशोधन लाये. और यदि सांसद इसे पास नहीं करते है तो कृपया इन धाराओं को रद्द करने के लिए देश व्यापी जनमत संग्रह करें
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और एक बात :
राष्ट्र पर जब संकट आये तो हमें ऐसे बयान देने से बचना चाहिए जिससे प्रधानमंत्री का हौंसला पस्त होता हो। अत: प्रधानमंत्री जी को कायर या डरपोक कहना या उन पर व्यंग्य करना पूरे देश में नकारात्मक माहौल बनाता है। आलोचना और राजनीति हर स्थिति में होनी चाहिये किन्तु इसे शासन के स्तर तक सीमित रखना चाहिए, निजी हमला करना या व्यंग्य का प्रयोग करना सिर्फ तनाव बढाता है।
संकट के समय हमें किस तरह के बयान नहीं देने चाहिए इस पर देश की दोनों बड़ी राजनैतिक पार्टियों के नेताओं को विचार करने की जरूरत है। क्योंकि जब मनमोहन जी पीएम थे तो इस तरह की वारदातों पर संघ=बीजेपी के शीर्ष नेताओं द्वारा उन्हें कायर एवं डरपोक कहा गया , और अब बदला भंजाने के लिए कोंग्रेस के कार्यकर्ता मोदी साहेब की खिल्ली उड़ा रहे है।
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