संभवतया , ये सवाल इस ग़ज़ल से प्रेरित है
मेरे रश्के कमर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलायी मज़ा आ गयाबर्क़ सी गिर गयी काम ही कर गयी आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया
आमतौर पे लोग इसे नाभि के पास का कमर समझते हैं । पर ऐसा नहीं है। दोनों के ‘क’ में फ़र्क़ है ।
कमर کمر : शरीर का अंग । इसमें ये क है ک
क़मर قمر : चाँद । इसमें ये क अलग है ق बिंदी/ नुक़्ता वाला
तो रश्के क़मर का अर्थ हुआ जिससे चाँद को भी जलन होने लगे।
दरअसल ये अरबी शब्द है। अरबी में सूरज को शम्स कहते हैं और चाँद को क़मर । हमलोग जो मेहताब जानते हैं वो फारसी से है । इनका फ़र्क़ यहाँ देखें
- हिंदी सूरज चाँद
- फ़ारसी आफताब माहताब
- अरबी शम्स क़मर
- अंग्रेज़ी सन मून
शम्स और क़मर दोनों को ‘मीर’ के इस शेर में देखें
फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थेपर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
अर्थात,
फूल , गुल , सूरज , चाँद सारे थे - जिन्हें सौंदर्य का प्रतीक माना जाता
है, सुन्दरता का पैमाना माना जाता है, पर दुनिया के सर्वोत्कृष्ट सौंदर्य
के रहते हुए भी - मुझे तुम्ही बहुत भाए।
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