हम अपने कपड़े क्यों इस्त्री करते हैं?



Allu Arjun MAXIM Photo Shoot ULTRA HD Photos, Stills | Allu Arjun for Maxim India Magazine Images, Galleryएक दिन
एक पड़ोस का छोरा
मेरे तैं आके बोल्या :
‘चाचा जी अपनी इस्त्री दे द्यो’
मैं चुप्प
वो फेर कहन लागा :
‘चाचा जी अपनी इस्त्री दे द्यो ना?’
जब उसने यह कही दुबारा
मैंने अपनी बीरबानी की तरफ कर्यौ इशारा :
‘ले जा भाई यो बैठ्यी।’
छोरा कुछ शरमाया‚ कुछ मुस्काया
फिर कहण लागा :
‘नहीं चाचा जी‚ वो कपड़ा वाली’
मैं बोल्या‚
‘तैन्नै दिखे कोन्या
या कपड़ा में ही तो बैठी सै।’
वो छोरा फिर कहण लगा
‘चाचा जी‚ तम तो मजाक करो सो
मन्नै तो वो करंट वाली चाहिये’
मैं बोल्या‚
‘अरी बावली औलाद‚
तू हाथ लगा के देख
या करैंट भी मार्यै सै।’

पहले तो हम भी सोचत रहे की आप स्त्री की बात कर रहे है या इस्तरी की , फिर ख्याल आया की दोनों में कोऊ फरक नाही । दोनों ही एक जैसे है , दोनों ही हमें सलीके से रहना सिखाते है , गरम भी हो जाते है और यदा-कदा दोनों ही करंट मारते है ।
दोनों ही हमें सभ्य समाज में उठने बैठने लायक बनाती है । छडे को तो कोई घास भी नहीं डालता और न किसी पार्टी में बुलाया जाता। गलती से बुला भी लिया गया तो दूध से मख्खी की तरह अलग खड़ा कर देते है। स्त्री साथ हो तो बाकी लोग निश्चिन्त , कोऊ खतरा नाही अब। ठीक उसी तरह इस्तरी किये कपडे , हमें समाज में थोड़ा बहुत सम्मान दिला देते है , वर्ना फटे हाल को कौन बुलाता है।
इस्तरी कपडे की सल निकाल देती है , स्त्री दिमाग के बल ठीक कर देती है ।
एक बार एक चूहा , शेर की शादी में आगे आगे नाच कर रहा था , लोग बोले अबे तू यहाँ क्या कर रहा है , वह बोलै मेरे छोटे भाई की शादी है , तेरा छोटा भाई -लोगो ने आश्चर्य किया !
हाँ, शादी के पहले मै भी शेर ही था !!
तो स्त्री के आगे शेर सिंह भी मुर्दार हो जाता है , अलबत्ता इस्तरी के बाद मुर्दा कपड़ो में भी जान आ जाती है।

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