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Monday 25 February 2019

सुहागरात यानि वेडिंग नाइट की सच्चाई क्या है?

  Dilip Yadav       Monday 25 February 2019

गत वर्ष वैवाहिक सूत्र में बंधने के बाद मैं अपने आप को इसका एक जवाब देने का लिए समर्थ समझता हूँ। सुहागरात जैसा फिल्मों में दिखाया जाता है मेरा अनुमान है कि बहुत ही कम लोगों का वैसा होता होगा। हफ़्तों भर विवाह की तैयारियां करते-करते और सारे वैवाहिक विधि-विधान निपटाते-निपटाते और फिर विवाह की रात जागे हुए काटने की वजह से दूल्हा और दुल्हन किसी मे इतनी हिम्मत नही बचती की फ़िल्मी अंदाज़ में सुहागरात मन सके। यह था सुहागरात का सत्य।
अब मैं अगर अपना बताऊँ तो मेरे लिए सुहागरात अपनी पत्नी को जानने की शुरुआत थी। हमारा विवाह हमारे परिवारों ने निश्चित किया था। विवाह से पहले मैं केवल तीन बार अपनी होने वाली मोहतरमा से मिल पाया था। एक तब जब परिवार के साथ देखने गया था। दूसरी बार सगाई पर और तीसरी बार विवाह से कुछ समय पूर्व उनकी बड़ी बहन के साथ हम कुछ खरीद करने गए थे। वहां पहुच कर मेरी बुआ और फूफाजी भी शामिल हो गए। इंतेहाँ यह कि सगाई के करीब 15 दिन बाद मैं उनकी बड़ी बहन जो मेरे घर के पास ही रहती हैं से अपनी पत्नी का फ़ोन नंबर मांगा था।
तो विवाह से पूर्व हमारी फ़ोन और व्हाट्सएप्प पर बात होती थी। दिन भर दोनों ऑफिस में मौका मिलते ही व्हाट्सएप्प पर मैसेज करते एक दूसरे को और फिर रात में भी सोते समय। कई बार मैं उत्सुकता से इंतज़ार करता और वो ज़ालिम ऐसी की नेटवर्क का बहाना मार कर फ़ोन का नेट बंद कर के सो जाती और मैं नींद में फ़ोन पकड़े-पकड़े जवाब आने का इंतज़ार करता।
अंततः यह कि विवाह पूर्व हमें एक दूसरे को बहुत अच्छे से जानने का अवसर प्राप्त नही हुआ। वह मुझे उतना ही जान सकती थी जितना मैं बताता और मैं भी उन्हें उतना ही जान सकता जितना वो मुझे बताती। अतः हमारे लिए सुहागरात बहुत महत्वपूर्ण होने वाली थी। कुछ संकोच कुछ शर्म उनके मन मे भी थी और कुछ संकोच कुछ शर्म मेरे मन मे भी। और मैं स्वभाव से शर्मीला किस्म का भी हूँ। रात के साढ़े ग्यारह बजे रहे थे जब मुझे कमरे में अंदर भेज गया। मुझे थकान तो खैर थी नही क्योंकि विवाह के तीन दिन बाद दुल्हन की विदाई हुई थी तो मैं थोड़ा बहुत आराम कर चुका था। और घर में नाते रिश्तेदारों की संख्या भी अब कुछ न के बराबर बची थी। परंतु वो बेचारी दिन भर बुत की तरह कमरे में एक जगह बैठी रही थी। आखिर घर मे नई दुल्हन आयी थी। हर कोई देखना चाहता था। क्या रिश्तेदार क्या पड़ोसी। फिर हर महिला के लिए उठ कर और फिर झुक कर पैर छूना वो भी बिना आराम के एक नई जगह में एक अकेली लड़की के लिए बहुत थका देने वाला था। दिन भर दुल्हन देखने वालों का तांता लगा रहा। दोपहर में कुछ देर आराम मिल होगा वो भी पता नही बेचारी सो पायी होगी या नही।
तो वापस आते हैं। रात के साढ़े ग्यारह बजे रहे थे। मुझे कमरे में धकेला गया। सेज़ सजी थी परंतु फिल्मों की तुलना में कुछ भी नही। जितना समय मिला उसमे जितना ला पाया फूल ले आया था। घर पर बहनों ने उसका इस्तेमाल दुलहन का स्वागत करने में करने में कर लिया। थोड़ा बहुत जो बचा वह सेज पर सजा दिया गया। बिस्तर पर बीच मे मेरी दुल्हन बैठी थी। एकदम फिल्मी अंदाज़ में लाल जोड़े में घूँघट किये हुए। पता नही बेचारी कबसे उस अंदाज़ में बैठे हुए मेरा इंतज़ार कर रही थी। दिनभर बैठे-बैठे उनकी तशरीफ़ में दर्द अवश्य हो गया होगा। खैर इस समय की गंभीरता को समझते हुए मैं बैठी हुई दुल्हन के सामने बिस्तर पर पसर गया। वो बेचारी अभी भी संकुचित थी। बहुत डरी हुई भी थी। मैंने मज़ाक करने के लहजे में घूँघट के नीचे से देखने की कोशिश की की क्या पता इससे वो हँस पड़े। कुछ नही। डर बहुत हावी था।
खैर मैंने घूँघट उठाया। वह रो रही थी। मुझे उनके डर का पूरा आभास था। फिर मैंने अपनी दुल्हन से बात करने की कोशिश की। मैं अपने जीवन के इस अध्याय का आरंभ स्नेह और विश्वास की नींव डाल कर करना चाहता था। मैंने बात की पता था मुझे की वो डरी हुई क्यों है। मैंने समझाया कि डरने की आवश्यकता नही है। हम एक नए रिश्ते की शुरुआत करने जा रहे थे। मुझे किसी बात की कोई जल्दी नही थी। वह अपना समय लें।
अभी के लिए सोना चाहे तो सो जाए। वह थकी हुई थी और डरी हुई भी। अब वह पलंग के एक छोर पर सो गई मुझसे दूसरी तरफ मुह घुमा कर। और मैं दूसरी तरफ़। सिसकियों की आवाज़ सुनाई दी। देखा तो वो रो रही थी। अब मुझे एक पति के साथ पिता का फर्ज भी निभाना था। इस समय मैंने अपनी पत्नी के हाथ के अलावा किसी और अंग का स्पर्श किया था। बाजू को पकड़ मैंने अपनी तरफ घुमाया और फिर बातें करने लगा। कुछ देर बाद वह शांत हुई। इस पूरे प्रकरण में मैंने इस बात का पूर्ण ध्यान रखा कि मैं किसी भी ऐसे अंग का स्पर्श न करूं जो मेरी पत्नी जो कि मेरे लिए अभी एक अनजान महिला की तरह ही थी, को अच्छा न लगे।
कुछ शांत हुई तो अपने आप ही वह मेरे बाजू पर सिर रख कर सो गई। मैं भी कुछ देर बाद सो गया।
और ऐसे हमारे वैवाहिक जीवन का प्रारंभ हुआ।
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