निकोलस कोपरनिकस, गालिलियो गल्लिली और उनके बाद आने वाले महाकाश विज्ञानियों ने!
इससे
पहले दुविधा बने की पृथ्वी तो पहले से है जिसपर हम बसे हुए हैं। तो फिर
इसकी खोज कैसे संभव है। तो पहले समझते हैं खोज का मतलब क्या है।
खोज
मतलब कोई वस्तु या स्थिति का पहलेसे होना और बाद में इसके बारे में सही
जानकारी प्राप्त होना। जिसे हम आविष्कार भी कहते हैं। जैसे कॉलुंबूस
आमेरिका का खोज किए थे, मतलब उस भूखंड को सबके सामने लाए।
वैसे ही पृथ्वी की सही अस्तित्व पर एक मॉडल कोपरनिकस बनाए थे।
(कोपरनिकस
का मोड़ेल जिसमें sol ( सूरज) तथा तीसरे कक्षा पर जो गोल बनी है वो पृथ्वी
है। इसको हेलियोसेंट्रिक मॉडल भी कहा जाता है। यह १५४३ में बनाया गया था।)
उनसे
पहले सबको लगता था कि पृथ्वी स्थिर और सूरज आदि अन्य नक्षत्रों इसके चारों
तरफ घूम रहे हैं। ग्रीक दार्शनिक अरोस्टोटल का भी यही मानना था। और दुनिया
भर में उनके सिद्धांत को माना जाता था।
( यह रहा पहले वाला सिद्धान्त, जिसमें पृथ्वी को ब्रम्हांड का केन्द्र माना जाता था। )
हालाकि कॉपोनिकस ने इस तथ्य को खंडन करनेकी पहले कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने उसे प्रमाणित नहीं करपाया।
लेकिन
गैलीलियो पहले वो वैज्ञानिक थे जिन्होंने प्रमाणित किया अपने द्वारा बनाई
टेलीस्कोप से कि ग्रहों का अपना उपग्रह है और वे उनके चारों तरफ घूमते है,
तथा पृथ्वी एक ग्रह है और वो सूरज के चारों तरफ पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों
घूमते हैं।
इस बात केलिए उन्हें पूरे
रोमान पद्रि मंडल तथा दुनिया भर से विरोध मिला। और इन्हे अपने ज़िन्दगी में
बहुत समालोचना मिली इनकी खोज तथा सिद्धांत केलिए।
लेकिन
धीरे धीरे सबको पता चला कि वे दोनों सही है। फिर और बड़े बड़े टेलीस्कोप
निकले और सहिमे ग्रहों की गति विधि सूरज के चारों तरफ होता है इसका प्रमाण
मिला।
फिर जब महाकाश को हमारे उपग्रह जाने लगे, उनके भेजे हुए तस्वीरों ने इन दोनों वैज्ञानिकों की बात की सच्चाई दिखाई दुनिया को।
यह रही धरती की पहली तस्वीर महकाश से, जिसको १९४६ में अमेरिकी v2 सैटेलाइट द्वारा लिया गया था।
और आज जो हमें प्रथ्वी का स्वरूप देखने को मिलता है वो महाकश में कुछ ऐसा दिखता है।
प्रश्न था -
पृथ्वी की खोज किसने की?
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