मुबारक हो आपका भी उल्लू कट गया। और उल्लू तो मैं तहजीब दिखते हुए लिख रहा हूँ। कटा क्या है आप भी जानते हैं। भाई साहब आपको उल्लू बनाया जाता। जैसे ही कोई कंपनी कहती की लोन या कर्ज बिना व्याज मिलेगा, आपका उल्ला उसी समय कट जाता है।
इस बात को आसानी से समझने के लिए मैं आपको बजाज फिनसर्व का उदहारण देता हूँ। ऐसी सभी कम्पनिया दो तरीके से मुनाफा कमाती हैं।
- बहुत ही बड़े स्तर पर।
- छोटे स्तर पर।
बात करते है बहुत बड़े स्तर की - इसमें कम्पनिया खरीदार और उत्पादक दोनों से ही मुनाफा कमाती है। कर्ज देने वाली कंपनी उत्पादक से ही सौदेबाजी कर लेती है। और सारा मुनाफा उत्पादक से ही कमाती है। समझने की कोशिश कीजिये। इसमें उत्पादक सैमसंग है, तो बजाज सैमसंग के पास जाता है और कहता की तुम एक लाख टीवी बनाओ बिकवाने की जिम्मेवारी मैं लेता हूँ। मैं लोगो को मुफ्त में लोन दूंगा सामान ज्यादा बिकेगा। और यही पर बजाजा टीवी के दाम में अपना मुनाफा भी जोड़ देता है। आपकी जेब से गया मगर पता नहीं चला।
अब छोटे स्तर की बात - उदाहरण - मान लीजिये आपने सैमसंग से बीस हजार का फ़ोन ख़रीदा। छह हजार आपने उसी समय भुगतान कर दिया और बाकि चौड़ा हजार की जीरो % पे आठ किस्ते बन जाती है। लेकिन पहली बार फाइल चार्ज और कार्ड के नाम पे 800 के करीब ले लिए जाते हैं। और साथ ही बजाज ने मुफ्त में आपको अपना कार्ड भी बेच दिया । अब अगर आप चौदह हजार और आठ महीनो का हिसाब लगाएंगे के तो व्याज दर डेढ़ पर्सेंट के आस पास होगा। इतना ही नहीं। कर्ज देने वाली कंपनी विक्रेता को पूरे चौदह हजार नहीं बल्कि पहले से ही तय लेकन 14 हजार से कम देगा, अनुमान 13400 का है।
दोस्त मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। मुफ्त की सलाह में भी स्वार्थ छिपा होता है।
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