90 दिनों में “फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना सीखें” वाले दावे कितने सही होते हैं?


आप जानना चाहते हैं कि “90 दिनों में “फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना सीखें” वाले दावे कितने सही होते हैं?”
इस बात को ध्यान में रखें कि यह ‘विज्ञापन की भाषा’ है जिसमें थोड़ी अतिशयोक्ति अपेक्षित होती ही है.
फिर भी यदि तीन महीने तक आप लगन से सीखेंगे और उपयुक्त मार्गदर्शन में बोलने का प्रयास करेंगे तो आपको सफलता अवश्य मिलेगी. अंग्रेजी इतनी भी मुश्किल नहीं है जितना इसका लोगों में भय होता है.
तीन महीने का समय आपके मन में बैठे भय को मिटाने और कुछ नया शुरू करने से पहले की झिझक को दूर करने के लिए प्रयाप्त है. बाक़ी सिखाने वाले की क़ाबलियत और आपकी मेहनत पर निर्भर है.
याद रहे कि प्रायः अंग्रेजी बोलने की ट्रेनिंग देने वाले आपको आप तौर पर इस्तेमाल होने वाले कुछ शब्दों, वाक्यों आदि को समझने और बोलना सिखाने की ही कोशिश करते हैं, जिससे कि बिलकुल नये अन्जान अपरिचित माहौल में आप परेशान न हों. मान लीजिये कोई ऎसी जगह जहाँ कोई भी हिन्दी नहीं जानता.
प्रायः उनके पास जो लोग अंग्रेजी सीखने आते हैं उनमें खास कर वे लोग होते हैं जो कि रोजगार के लिये विदेश जाने वाले होते हैं, या फिर ऐसे लोग जो अंग्रेजी समझ सकते हैं लेकिन सिर्फ बोलने में हिचकते हैं.
सह कहूं तो में अच्छी भली नौकरियां कर रिटायर हो चूका हूँ, लेकिन पूरे जीवन भर अंग्रेजी में बात चीत करते रहने के बाद भी मुझे अंगेजी में बात करना पसंद नहीं है. मैं हिन्दी में बात करना ही पसंद करता हूँ.
आज भी मुझे यदि किसी अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया से आये हुये व्यक्ति से बात करनी हो तो कुछ परेशानी हो सकती है क्योंकि उनका बोलने का तरीका अलग होता है. विदेशी माहौल में अंग्रेजी बोलना अलग बात है. ये ट्रेनिंग देने वाले आपकी खास जरूरतों को समझकर आपका पठन पाठन का कार्यक्रम बनाते हैं.
विचार कीजिये कि अरब देशों में जाकर रोजगार करने वाले व्यक्ति की जरूरतें और ऊंची दर्जे की पढाई के लिए लन्दन जाने वाले विद्यार्थी की जरूरतें अलग अलग होंगी, उनकी अब तक की पढाई का स्तर, निजी सोच- समझ, परिवार के आर्थिक हालात, रहन सहन, बोल चाल आदि सब अलग होंगे. अब सोच लीजिये कि एक शिक्षक के रूप में आप उन दोनों के लिए कैसे पाठ्यक्रम तैयार करेंगे.
सभी के पास समय कम होता है और वह व्यक्ति तथा खास कर उसका परिवार इतना आशवस्त हो जाना चाहते हैं कि उनके प्यारे बच्चे को विदेश जाकर बोली भाषा के कारण तो कोई तकलीफ न हो.
यह 90 दिन का कैप्सूल प्रोग्राम ऐसे ही लोगों के लिये होता है, और प्रायः यह कामयाब भी होता है.
कोशिश कीजिये और एक बार स्वर्गीय श्री देवी जी की फिल्म “इंग्लिश विन्ग्लिश “ जरूर देख लें.
उस फिल्म की यह एक लाइन बहुत ही खास है : “पहली बार बस एक ही बार आता है.”

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