पहली बार लोग सन् 1969 में चाँद पर गए थे, लेकिन आखरी बार नहीं । क्योंकि
अपोलो 11 से अपोलो 17 तक चन्द्रमा पर उतरने के लिए कुल मिला कर 7 अभियान हुए, जिसमे से सिर्फ एक अभियान अपोलो 13 में गए यात्री तकनीकी खराबी के कारण चाँद की सतह पर उतरने में नाकाम रहे थे। और
हर अभियान में तीन यात्री जाते थे , जिनमें से दो अंतरिक्ष यात्रियों को चाँद पर उतरना होता था, इस तरह से कुल मिलाकर 6 सफल उड़ानों में 12 इंसानों ने चाँद की सतह पर कदम रखा था । अंतिम अपोलो अभियान अपोलो 17 सन् 1972 में सम्पन्न हुआ था।
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अब बात आती है कि भाई इसके बाद कोई चाँद पर क्यों नही गया , या अब कोई मानव चन्द्र अभियान क्यों नहीं होता है?
उत्तर:- जरूरत नहीं थी और अभी भी नहीं हैं , दअरसल ये जोखिम भरा है और अब इन्सान को चाँद पर भेजकर कुछ हासिल नहीं होने वाला। क्योंकि
चाँद
पर इंसान को भेजने के लिए कोई बड़ा उद्देश्य होना चाहिए जो कि अभी नहीं है,
मानव रहित अभियान ही सारा काम कर देते है, इसमें जान का जोखिम भी नहीं
रहता, ज्यादा समय तक रोबोट काम कर सकता है, उसे वापस लाने की जरूरत नही
होती और सस्ता भी पड़ता हैं।
दरअसल
अपोलो कार्यक्रम भी कोई वैज्ञानिक कार्यक्रम नहीं था , इसका प्रमुख
उद्देश्य राजनैतिक था , और वो था, सोवियत संघ को अंतरिक्ष कार्यक्रमो में
पछाड़ना। आप देखना अपोलो कार्यक्रम में गए लगभग सभी यात्री सैनिक थे न कि वैज्ञानिक , सिर्फ एक वैज्ञानिक हैरिसन श्मिट अपोलो 17 के द्वारा चाँद पर गए थे, वे चाँद पर गए प्रथम व अंतिम वैज्ञानिक हैं।
आपको
पता होगा उस समय सोवियत संघ व अमेरिका के मध्य अंतरिक्ष में भी युद्ध चल
रहा था, और इसमे अमेरिका सोवियत संघ से पीछे चल रहा था इसलिए अमेरिका के
तत्कालीन राष्ट्रपति कैनेडी साहब ने नासा के सामने अमेरिका को चाँद पर
भेजने का उद्देश्य रखा। और अपोलो कार्यक्रम के द्वारा इस अंतरिक्ष युद्ध मे
अमेरिका सोवियत संघ से आगे निकल गया ,ऐसे में इस कार्यक्रम का मुख्य
उद्देश्य पूरा हो चुका था, अब मानव को चाँद पर भेजकर जो कुछ हासिल करना था
वो किया जा चुका था ।
और जब भी चाँद के अध्ययन की बात आती है तो मानव रहित अभियान में गए रोबोट ये काम ज्यादा अच्छे से कर लेते है।
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